Asahyog Andolan me Madhya Pradesh ki Mahilaon ka Yogdan
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पराधीनता, स्वाधीनता, राष्ट्रीय स्तर का आन्दोलनAbstract
पराधीनता प्रत्येक व्यक्ति व राष्ट्र के लिये सबसे बड़ा अभिशाप है। भारतवासियों के लिये भी पराधीनता के उस दुःखस्वप्न से वाहर निकलना एक कठोर तपस्या से कम नहीं था। तुलसीदास जी ने कहा भी कि पराधीन सपनेहुं सुख नाहीं अर्थात् पराधीन व्यक्ति को सपने में भी सुख नहीं मिलता है। पराधीनता विकास के मार्ग में सबसे बड़ा अवरोधक है। यह तो एक गहन रात्रि के समान है जिसमें सुबह नहीं होती। 1915 में द. अफ्रीका से वापस आकर महात्मा गांधी ने भारतीय राजनीतिक पटल पर अपनी दृष्टि केन्द्रित की। स्वाधीनता के इस संघर्ष को तीव्रता प्रदान करने हेतु उन्होने माना कि जन सामान्य को संघर्ष से जोड़ा जाना एक अनिवार्य आवश्यकता है क्योंकि एक राष्ट्रीय स्तर का आन्दोलन छेड़े जाने हेतु समाज के हर वर्ग का सूत्रबद्ध होना नितांत आवश्यक है।
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References
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